जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!...
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल – कन्या – वरं, परमरम्यं ।
बृहस्पतिदेव की कथा
बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए, शनि के प्रकोप से बचने हेतु हनुमान चालीसा का पाठ करें
करत कृपा सब के घटवासी ॥ दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
ब्रह्म – कुल – वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट – वेषं, विभुं, वेदपारं ।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
शिव Shiv chaisa भजन